Friday, May 28, 2021

सफर खुद की तलाश का

न अक्स हूं न सच्चाई 
न असलियत न परछाई
न हूं सवालों का जवाब 
न ही बीते लम्हों का हिसाब 

अपनी रूह को टटोलो
बंद मुट्ठी को मत खोलो 
पलकों के परदे गिराओ 
और खुद में समा जाओ 

तुम्हारे अंदर इक जहां है 
मेले का मंजर वहां है 
उस जहां में सब पास है 
हकीकत नहीं एहसास है 

ज़ेहन में जो सोचोगे
बस वही हर पल देखोगे 
तुम्हारे दिल में जो खास है 
उस दुनिया में वो पास है

हर शख्स अपने सफर में है
कहीं शाम कहीं दोपहर है 
ये सफर खुद की तलाश का 
कभी यकीं का कभी काश का

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