Friday, May 28, 2021

इंसान की फितरत

इंसान की फितरत 

जब रास्ते खुले से थे 
वादियां बुलाती थीं
वो यूं ही दुबका रहता था 
रजाईयां सुलाती थीं

अब फैला धुआं सा है 
राहें हुई सभी वीरान 
छटपटा रहा सा है
खुद की कैद में इंसान

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