Friday, May 28, 2021

बादल

बादल 

यहां पे सूरज आता था 
सूर्यमुखी को भाता था 
मेरी प्यारी बगियों में 
भंवरा गाना गाता था  

बागियों में होती थी गुनगुन
फूलों के झूले खिलते थे 
दाना चुगने को उड़ते थे फिर
पेड़ों पर पंछी मिलते थे 

पूरब से हवाएं आने लगीं
पश्चिम में घटाएं छाने लगी 
शाखें और पत्ते लहराए 
कुछ सिमट गए कुछ घबराए 

फिर हवाएं कुछ और बढ़ीं 
उनकी भृकुटियां कुछ और चढ़ीं 
शाखें भर्रा के टूट गई 
पेड़ों की किस्मत फूट गई 

कुछ बूंदें आई इतरा के 
मेरी बगिया में खुद सजने लगीं
उन्हें रोकेगा अब कौन भला
मेरी टूटी छप्पर बजने लगी 

बादल तुम क्यों आते हो
सावन को क्यों लाते हो 
मेरी यादों के शीशों के
टुकड़े करते जाते हो 

यादें मेरी उन गलियों की
जहां बारिश आती जाती थी 
होती थीं नजरों में बातें 
मेरा छज्जा उसकी खिड़की थी

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