बादल
बादल
यहां पे सूरज आता था
सूर्यमुखी को भाता था
मेरी प्यारी बगियों में
भंवरा गाना गाता था
बागियों में होती थी गुनगुन
फूलों के झूले खिलते थे
दाना चुगने को उड़ते थे फिर
पेड़ों पर पंछी मिलते थे
पूरब से हवाएं आने लगीं
पश्चिम में घटाएं छाने लगी
शाखें और पत्ते लहराए
कुछ सिमट गए कुछ घबराए
फिर हवाएं कुछ और बढ़ीं
उनकी भृकुटियां कुछ और चढ़ीं
शाखें भर्रा के टूट गई
पेड़ों की किस्मत फूट गई
कुछ बूंदें आई इतरा के
मेरी बगिया में खुद सजने लगीं
उन्हें रोकेगा अब कौन भला
मेरी टूटी छप्पर बजने लगी
बादल तुम क्यों आते हो
सावन को क्यों लाते हो
मेरी यादों के शीशों के
टुकड़े करते जाते हो
यादें मेरी उन गलियों की
जहां बारिश आती जाती थी
होती थीं नजरों में बातें
मेरा छज्जा उसकी खिड़की थी
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