कुनकुने दिन ... 19 अप्रैल 21
कमोबेश वही कुनकुने दिन
गर्मी बहुत और पेड़ थे पत्तों के बिन
मिलती थी निगाहें धधकते थे दिल
करना था एक दूजे को हासिल
सिलसिला ये चलता था
सुबह से शामो सहर
थे उनकी नजर में
और हमारी वो आठों पहर
वक्त की करवटों में
सफर यूं ही चलता चला
पर फिर एक खत लिखा मोहब्बतों भरा
और थम गया सिलसिला
बरस बीते मौसम गुजरे
और वक्त बहता गया
हमारा रिश्ता भी कुछ यूंही
जुदाई को सहता गया
मगर इत्तेफाक से भरे मोड़ पर
दिल से दिल को जोड़ कर
किस्मत हमारी थी सोचती
कैसे फिर करवाएं दोस्ती
मुलाकाते हुईं दोस्ताने बढ़े
एक दूजे की नजरों में फिर से चढ़े
किस्से सुनाई कहानियां सुनी
खुशियां सुनाई परेशानियां सुनी
कमोबेश वही कुनकुने दिन
गर्मी बहुत और पेड़ हैं पत्तों के बिन
मिलती हैं तासीर जुड़े हैं दिल
दोस्ती हुई जवां मिल गई मंज़िल
बेहतरीन खुशगवार खूबसूरत मौसम में एक बेहद स्याह रात में टिमटिमाती चांदनी की रोशनी में बैठकर के लिखे हुए लम्हों में छुपी हुई है हजार मुबारक और लाखों दुआएं ... अल्लाह ताला आपको और आपके सारे चाहने वालों को खुशियों से नवाजे 🙏🏻
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