अर्जुन ... 11 अप्रैल 21
युद्धों का ये महाक्षेत्र है, करो नमन ये धर्मक्षेत्र है
यहां देव पिशाच का भूमि मंथन, कुरुक्षेत्र ये कुरुक्षेत्र है
लेकर हृदय दया से आर्द्र, नतमस्तक हुए स्वयं पार्थ
गांडीव त्याग कर ससम्मान, प्रार्थना में बोले "हे श्याम"
"प्रभुवर मेरी याचना है, धर्म की ये विस्थापना है
असमर्थ हूं शक्तिहीन हूं, कृपा करो मैं मतिहीन हूं"
चक्रधारी हैं प्रकांड विद्वान, लाए मुख पर एक मुस्कान
दिया धर्म का वो उपदेश, पार्थ हो गए भावावेश
यह उपदेश गीता का है, कर्तव्य ही माता और पिता है
जो मानव है और सजीव है, वो अर्जुन और कर्म गांडीव है
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