मैं कौन हूं ... 21 अप्रैल 21
मैंने अपने अंदर खुद को छुपा रखा है
लोगों के लिए दर पे किरदार बिठा रखा है
अपना सब कुछ ढो के चलता हूं राहों पे
पर कोई देखे तो बस आईना ही उन्हें दिखा है
कौन हैं हम क्या है हमारी असलियत
कौनसी है चाहतें और कैसी है नीयत
क्यों नहीं आती सामने हमारी सच्चाई
कौन सी है बुराई और कौनसी है अच्छाई
शायद यही है इन गहरे सवालों का जवाब
कि हमारी पहचान है जैसे की पैमाने में शराब
आप अगर मानो तो है बस थोड़ा सा पानी
और या तो मानो है ये ज़िंदगी की रवानी
सौ सौ तजुर्बों से लाया निचोड़ कर मेरा वजूद
कई किस्से दर्द भरे तो कई किस्से बहुत खूब
इन तजुर्बों में छिपे चेहरे, जज़्बात और इंकलाब
कुछ हैं परदे में और कुछ बिलकुल बेनकाब
परत दर परत साल दर साल मानो एक प्याज
तजुर्बे थे कुछ कल के तो कुछ हुए बस आज
परत उतरते देख लगेगा नकाब सरकती है
पर हर परत के पीछे एक और परत सिमटती है
मैं खुद परतों के नशे में कुछ ख्वाब बुनता हूं
मेरे सच को सच में अपनेआप ढूंढता हूं
मगर नहीं पाया खुद की गहराइयों को अब तक मैने
बस कभी डोलता हूं तो कभी झूमता हूं
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