कलम ... 21 अप्रैल 21
कलम मानो उनके इंतजार में थी
स्याही बस उनके लिए बेकरार थी
अल्फाज बरस पड़ना चाहते थे उतर के कागज पे
और उनकी जिंदगी को एक वजह की दरकार थी
सिमट कर रखे थे बंद गलियारों में ख्याल
बेचैनियां पल में तोला पल में माशा
पर जब आया वक्त जज्बातों के दरवाजों का
वो लहरा पड़े खुलने को बेतहाशा
आते गए फिर उनके कलाम दर कलाम
किसी में छुपा सच किसी में बस सलाम
यही मेरी दुआ है तुझ से ऐ अल्ला ताला
उनकी कागज कलम रहे यूं जैसे मोती और माला
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