किरदार
/// किरदार ///
निगाहें तैश ज़ुबां से गरम
मेरी जिंदगी का बस मैं सरगना था
ना रहबर की ख्वाहिश, किसी की ना परवाह
मेरी कायनात थी और मैं ही खुदा था
महफ़िल में मेरे मवादों की फेहरिस्त
वो धुआं सा सबके दिलों से था आता
मेरी अशर्फियों की गिनती कभी थी न रुकती
मेरी कायनात थी और मैं ही खुदा था
एक जलती दुपहरी में उनींदा सा था मैं
पर वो शख्स मुझसे कुछ कहने लगा था
मेरी दमकती फेहरिस्त तैयार थी
मेरी कायनात थी और मैं ही खुदा था
वो कहने लगा मैं तेरा ही हूं
तेरी असलियत नहीं बस किरदार हूं
तू जिसे समझता है तेरी ताकतें है
बस खुदा की नवाजी नेयामतें हैं
तुझे उसने भेजा है ये उसकी है दुनिया
तू है महज इक जिम्मे का लिफाफा
तू घमंड में है इतना क्यों बहता
तू इंसान था काश इंसान ही रहता
कभी है तू खादिम कभी है वली तू
मगरूरियत की फिर क्यों है हिमाकत
बना कांधा किसी के सफर का तू जैसे
तुझे होगी एक दिन कांधे की जरूरत
बस किरदार का तू ये इस्तेमाल कर
कि हर चेहरा तुझसे खुशी पाएगा
पर मुझे तेरे लहू में मिलने न दे
वरना तेरा सच कहीं गुम जाएगा
तेरे चाहने वाले तेरा सच चाहते हैं
तेरा किरदार इनसे अंजान है
उसे दूर रहने ही दे हर मोड़ पर
तेरे चाहने वालों का ताररूफ न कर
ये बोलकर वो किरदार विदा हो गया
मगर ज़ख्म दिल के सारे भर कर गया
ये जतला गया जिंदगी के लिए
न मेरी कायनात थी और न मैं खुदा था
Penned by me in Pune on 29 Mar 21
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