Tuesday, September 07, 2021

Another reply to फिलहाल

तेरे तोहफ़े मेरे संग, यादें दिलवाते हैं 
पायल बिंदिया कंगन, बस तुझे बुलाते हैं 

तूने पहनाई जो चुनरी, लहराना भूल गई
चाहे धूप हो जोरों की या सावन आते हैं 

मेरे ख्वाबों का रंग, काला काला सा है
दिल और दर्द का जोड़ा, मोती माला सा है

चाहे कोई मौसम हो, मुझे तन्हा लगता है 
मेरी पतंग नहीं उड़ती बस मांझा कटता है

आंसू भी सूख गए पर प्यास नहीं बुझती 
अब शाम के साए में मेरी सेज नहीं सजती 

मैं तुझे बुलाती हूं जब सांसें रुकती हैं 
हर आहट पर बस पलकें उठती हैं

तेरी साजिश है कैसी, तू कहां गया है गुम 
जिंदा तो हूं पर मैं लगती हूं अब मरहूम

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